धूसर नगर के सम्राट वीरभद्र का एक पुत्र था जिसका नाम संजय था। संजय का लालन-पालन राजसी ठाट-बाट के साथ हुआ कालान्तर में राजकुमार का विवाह वीरनगर सम्राट अशोक की पुत्री नीरज के साथ हुआ नरीज सें राजकुमार संजय को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। जिसका नाम विराट रखा गया।
दैत्य से राजकुमार की मुलाकात
पुत्र रत्न की बधाई देने के लिए जब संजय अपने ससुराल वीरनगर जा रहा था तो रास्ते में वह एक बरगद के वृक्ष के नीचे विश्राम करने के लिए बैठा तो उसकी नजर एक घड़े पर पड़ी जो पीतल का था। जिज्ञासु राजकुमार ने जब घड़ा खोलकर देखा तो उसमें से एक विशाल दैत्य प्रकट हुआ। दैत्य ने राजुकमार का धन्यवाद किया और उसने(दैत्य) आपबीती सुनाई।
दैत्य की मदद करके राजकुमार खुश हुआ और घर लोटने लगा तभी दैत्य ने पीछे से वार किया और राजकुमार मारा गया इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि बिना सोचे समझे कोई कदम नहीं उठाना चाहिए।